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मेरी मर्ज़ी


जब सदियों का अंधेरा चीर कर

माँ के पेट से निकला था

वो जन्म मेरी मर्ज़ी का नहीं था !

वो बूँदें अमृत की

ज़रुरत थी मेरी |

उसके बाद जो लगा

खसरे का टीका

वो पहला डब्बे में बंद

दूध फीका-फीका

वो मेरी मर्ज़ी का नहीं था |

खिलौना मेरा,

बिछौना मेरा,

पहली कमीज़

गुड मॉर्निंग कहने की तमीज़

ये भी मेरी मर्ज़ी का नहीं था |

पहली किताब

असर था बाज़ार का

पहला ख्वाब

मिला मुझे उधार का |

स्कूल में दाखिला

दोस्तों का काफिला

उन्होंने जो मुझे दिया

बस वही मुझे मिला |

स्कूल के बाद कॉलेज

सत्रह सालों तक पायी जो नॉलेज

वो सब बस इसलिए कि

कमा सकूँ.....पैसे !

उन्होंने बनाना चाहा मुझे

वो चाहते थे जैसे |

मैं जानता हूँ

सच को मानता हूँ

आज के बाद की ज़िंदगी भी

मेरी मर्ज़ी की होगी नहीं

पता नहीं

जलायेंगे, दफनायेंगे,

चील, कौवों को खिलायेंगे

ज़िंदगी उनकी मर्ज़ी से

बाद की फ़िक्र भी नहीं मुझे

ये 'आज', ये 'पल'

मेरे हैं, मेरी मर्ज़ी के |

सच मानो

मेरी कलम जब कागज़ पर

ये लाईनें लिख रही है

तो मर्ज़ी बस मेरी है |


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