आज के दिन
यानी चौदह अगस्त के दिन
सालों पहले हम ग़ुलाम थे
ख़ुशी की बात है न ?
आज नहीं है !
सालों पहले चौदह अगस्त के दिन
हम बँटे हुए थे
जातियाँ थी, धर्म थे
ज़ुबानें थीं, दंगों के बाज़ार गर्म थे
कम थी उनकी तादाद
जिन्हें कह सकते थे - भारतीय
हम शिकार थे शोषण का
भूखी - नंगी
जनता पे वार था कुपोषण का
हमारे पैसों पर किसी और का राज था
सिर्फ़ दिल्ली के सर पे ताज था
अनपढ़ बच्चे भूख से बिलबिलाते
बड़े होकर बेरोजगार बन जाते
कुछ उस व्यवस्था से लड़ने के लिए
हाथों में उठाते थे देसी तमंचे, बम
खुशी की बात है
आज आज़ाद हैं हम !
उस चौदह अगस्त में कालिमा थी
आज देखो कितना उजाला है !
खुशियाँ ज़रूर मनाना
कल फिर पंद्रह अगस्त आने वाला है !
यानी चौदह अगस्त के दिन
सालों पहले हम ग़ुलाम थे
ख़ुशी की बात है न ?
आज नहीं है !
सालों पहले चौदह अगस्त के दिन
हम बँटे हुए थे
जातियाँ थी, धर्म थे
ज़ुबानें थीं, दंगों के बाज़ार गर्म थे
कम थी उनकी तादाद
जिन्हें कह सकते थे - भारतीय
हम शिकार थे शोषण का
भूखी - नंगी
जनता पे वार था कुपोषण का
हमारे पैसों पर किसी और का राज था
सिर्फ़ दिल्ली के सर पे ताज था
अनपढ़ बच्चे भूख से बिलबिलाते
बड़े होकर बेरोजगार बन जाते
कुछ उस व्यवस्था से लड़ने के लिए
हाथों में उठाते थे देसी तमंचे, बम
खुशी की बात है
आज आज़ाद हैं हम !
उस चौदह अगस्त में कालिमा थी
आज देखो कितना उजाला है !
खुशियाँ ज़रूर मनाना
कल फिर पंद्रह अगस्त आने वाला है !
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