जल्लाद
पूछता है - चीखता है क्यूँ
मर
गया तो ज़िंदा दीखता है क्यूँ
रोने
का मन हुआ तो रोया मन में क्यूँ नहीं
दहाड़
मार अपनी छाती पीटता है क्यूँ
जल्लाद
पूछता है चीखता है क्यूँ
इन
हवाओं पे हमारा कब से मालिकाना
मैं
बिखेरूँ मिर्ची इसमें जो करे ज़माना
साँस
अपनी करता तू बंद क्यूँ नहीं
हेंछू,
हेंछू करके साले छींकता है क्यूँ
जल्लाद
पूछता है चीखता है क्यूँ
नदी
में बहा जो पानी वो हमारा है
मेरी
मुट्ठी में लहर और किनारा है
मेरे
कारखाने डालें ज़हर क्यूँ नहीं
पीने
के लिए इसे उलीचता है क्यूँ
जल्लाद
पूछता है चीखता है क्यूँ
जो
हरा-भरा बचा है वो भी मेरा है
झाड़ू
विनिवेश का इस पे फेरा है
मोह
माटी का ये छोड़ता है क्यूँ नहीं
अपने
ख़ून से इसे सींचता है क्यूँ
जल्लाद
पूछता है चीखता है क्यूँ
आज
देख भीड़ भारी हो रहा हैरान
आगे
क्यों है बढ़ रहा पीछे का इन्सान
जो
कभी ना बोला आज चुप है क्यूँ नहीं
कस
के मुट्ठियों को भींचता हैं क्यूँ
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