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टक्कन जी


एक थे अपने टक्कन जी

गुल्लक उनकी खनखन थी

खुराकें रोटी-मक्खन की

पकवानें पूरी छप्पन सी

देह पे इत्र और उबटन जी

काम उनका वीरप्पन जी

मसीहा उनका मयप्पन जी

पूरी बैंड बजा रखी थी

जन की

गण की

मन की

ऐसे थे अपने टक्कन जी ॥

पर....

एक रोज़ गज़ब की हवा चली

जब ढोल फटा तब पोल खुली

चमक थी गुल्लक की नकली

खनक थी गुल्लक की नकली

अब....

चक्की पीसेंगे नौ मन की

गुल्लक का हटे जो ढक्कन जी

कुछ लोग अब भी सर धुनते हैं

"कौन है टक्कन" पूछते हैं

टक्कन है वो आदमजात

जिसकी टकाही ज़ात

जिसकी टकाही बात

अंत में टकासी औक़ात


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