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सुबह का इंतज़ार



आज सुबह से ही तुम्हारा इंतज़ार था !

और तुम इतनी देर से आये ?

क्या तुम्हें पता नहीं था

कल यहाँ उत्सव था !

सैकड़ों लोग जुटे थे !

बच्चे, बूढ़े, मर्द, औरत,

और नेता भी ....

तुम्हारी तो छुट्टी थी कल !

चलो ठीक है

पर तुम्हें पता तो था !

कि इतने लोगों के जुटने के बाद

कितनी गंदगी भी फैलेगी !

जूठे पत्तल, कागज़ की प्लेटें !

और तुम इतनी देर से आये हो

सफ़ाई वाले !!!

हर साल क्या तुम्हें बताना पड़ेगा

कि गाँधी जयंती के अगले दिन


ज़रा जल्दी आया करो !!



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