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प्यार


किताबों की एक दुकान से

किसी कविता की किताब की

दो प्रतियाँ, हूबहू एक सी

एक ही संस्करण की

ख़रीद कर लाएँ हम दोनों

और पढ़ते रहें देर तक

एक किताब तुम्हारी

एक किताब मेरी

हूबहू एक सी नहीं, एक ही...

एक साथ सफ़े पलटें

एक साथ वाह-वाह करें

एक संग ही आहें भरें

एक साथ ही किताब को सीने से लगा

ख़्यालों में गुम हो जाएँ

और किताब को जब ख़त्म करें

दिख रही हों

घड़ी की सूइयाँ एक सी ......

यही प्यार है !

..................

यही प्यार है ?

नहीं

प्यार तो तब है

कि किताब की दुकान पे

अलग किताब खरीदते देख

झगड़ने का मन करे

मगर जिस राह घर चलें साथ

वो राह हो एक सी, एक ही...

जिस कमरे में बैठ पढ़ें

वो जुदा किताबें

वो कमरा हो एक सा, एक ही...

तुम्हारी वाह मैं सुनूँ

मेरी आह तुम समझो

और जो भी पहले ख़त्म करे

किताब का आख़िरी सफ़ा

वो रूक जाए दो लम्हा

कि जब किताबों को छोड़

एक दूसरे की आगोश में थक कर सो सकें

तो दीवारों पर फैला रहे

नीम उजाला एक सा...

घड़ी की सूइयाँ हूबहू बताए

वक़्त एक सा .....


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