जो आग
नफरत की
जल रही
है अनवरत
तुम्हारे
मस्तिष्क की
अर्ध
विकसित कोशिकाओं में,
उसकी
आँच,
उसका
गहरा काला धुंआ
चढ़ते-चढ़ते
ऊपर की ओर
जा
पहुँचा है कैलाश तक |
और
वहाँ का श्वेत हिम
पिघल
रहा है -
शिव
बेघर होकर
भटक
रहे हैं संसार में ||
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