रखो
अपनी सभ्यता अपने पास
सभ्य समाज के सभ्य नागरिको
क्यों न भस्मीभूत कर दें
तुम्हारी उन बसों, ट्रेनों को
जिसमें आरक्षित रखनी पड़ती है सीट
महिलाओं, वृद्धों और विकलांगों के लिये ?
बजाये इसके
क्यों न आरक्षित करें
एक गोली धिक्कार वाली
अति-सभ्य सवारियों के हित में !
"महिलाओं के लिये आरक्षित"
सीटों पर पसरी वीरांगनाएँ,
उनके लिये आरक्षित हो चाबुक,
जिनके सामने खड़ी रहती हैं
एक पोपली आवाज़
"कहाँ उतरोगी बेटी?"
और तोप का एक गोला
परिवहन मंत्री के नाम
जिन्हें गैर ज़रूरी लगती हैं
कुछ सीटें
अपने वज़न से भारी बस्ते उठाये
बच्चों के लिये !
सभ्य समाज के सभ्य नागरिको
क्यों न भस्मीभूत कर दें
तुम्हारी उन बसों, ट्रेनों को
जिसमें आरक्षित रखनी पड़ती है सीट
महिलाओं, वृद्धों और विकलांगों के लिये ?
बजाये इसके
क्यों न आरक्षित करें
एक गोली धिक्कार वाली
अति-सभ्य सवारियों के हित में !
"महिलाओं के लिये आरक्षित"
सीटों पर पसरी वीरांगनाएँ,
उनके लिये आरक्षित हो चाबुक,
जिनके सामने खड़ी रहती हैं
एक पोपली आवाज़
"कहाँ उतरोगी बेटी?"
और तोप का एक गोला
परिवहन मंत्री के नाम
जिन्हें गैर ज़रूरी लगती हैं
कुछ सीटें
अपने वज़न से भारी बस्ते उठाये
बच्चों के लिये !
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