वो जुदा तो नहीं
संग रहा भी नहीं
दूर वो है नहीं
दरमियाँ भी नहीं
कारवाँ भी नहीं
मैं तन्हा भी नहीं
ये जीवन बन गया कविता छंदहीन
समझे वो भी नहीं
मैंने कहा भी नहीं
एक युग भी नहीं
एक लम्हा भी नहीं
मैं भूला भी नहीं
वो बिसरा भी नहीं
काश कि होती ये राह ..... अंतहीन
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