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पंद्रह अगस्त

यहाँ का तंत्र
दीन-हीन पर
जबरन लदा
कोई अनुबंध है ?
या
चंद सफेदपोशों का
लोगों पर प्रतिबंध है ?
या
मृतप्राय आज़ादी के स्वप्न की
सड़ती हुई गंध है ?
या
ढेरों सुधार की गुंजाईश हो
ऐसा विकृत हो चुका छंद है ?
हाल तो कुछ ऐसा हो गया
जिस दिन पंद्रह अगस्त है
उस रोज़ भारत बंद है !!

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    जुलाई, 2011
                                     राकेश कुमार त्रिपाठी



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