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अच्छा लगता है !

अच्छा लगता है !
बहुत ही अच्छा लगता है !
 हालाँकि मैं जानता हूँ 
ये मेरी ख़ुशफ़हमी भी हो सकती है | 
ये मेरी बेवकूफ़ी भी हो सकती है |  
पर मुझे अच्छा लगता है, 
जब मुझे एहसास होता है  
कि उतनी भीड़ में भी 
तुम्हारी आँखों ने मुझे ही देखा था |
 तुमने मेरी तरफ ही अपना हाथ हिलाया था | 
तुम्हारा एक एक शब्द जैसे मेरे लिए ही था | 
तुम्हारी मुस्कराहट के न जाने 
कितने नए अर्थ तलाशे थे मैंने | 
तुम्हारे वादों पर सदियों तक 
इंतज़ार करते रहना क़बूल था मुझे | 
बस, इतना एहसास होना ही काफी था 
कि तुम्हारा वजूद है मुझसे ही | 
वैसे तो घर पहुँच कर 
सर से पाँव तक घेर लेता है  
फिर वही एकाकीपन 
वही उदासी 
वही हताशा  
कभी कभी निराशा 
अपने आप से 
मेरे तुम्हारे संबंधों से | 
लगता है जैसे मैं तुम्हें जानता भी नहीं 
तुम एक छलावे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं  
इंतज़ार की वो घड़ियाँ  
तुम्हारे वादों की गूँज से भी  
लम्बी होती जाती है | 
मगर, अच्छा लगता है  
बहुत अच्छा लगता है  
जब तुम मुझसे मुख़ातिब होते हो 
लाल क़िले की प्राचीर से |


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                                              जुलाई, 2011
                                     राकेश कुमार त्रिपाठी



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