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एक लम्बी कविता !!!

बहुत दिनों बाद ख़याल आया,
जो कि कभी कभी मेरे दिल में भी आते हैं,
कि बहुत सालों से लिखी नहीं कोई
लम्बी कविता |
और जैसे ही ये ख़याल आया
ठान लिया कि आज पैदा करेगी मेरी कलम
एक लम्बी कविता |
नहाया
कपड़े बदले
एक प्याली कड़क चाय पी
मेज़ पर बिछा लिया नोट बुक
जिसके पास तन कर हाज़िर था पेन 
यानि कि पूरी तैयारी के साथ
उतरा था मैदान में कि रचूँगा 
एक बहुत ही लम्बी कविता
पर किस पर रचूँ ?
किस पर लिखूँ ?
किस पर कहूँ ?
लम्बी कविता ?
खींच - तान कर किस अहसास को 
इतना बड़ा कर लूँ कि ढल पाए 
वो शब्दों में, छंदों में ?
अहसास जन्म का ?
अहसास मृत्यु का ?
या फिर प्यार का ?
या नफ़रत का ?
भरोसे का, धोखे का ? 
वफ़ा का, दोस्ती का ?
चारों तरफ हैरान हो कर ढूँढता हूँ
कोई अहसास नहीं दिखता इतना गहरा 
कि जन्म ले सके 
कोई लम्बी कविता |
मेज़ पर पड़े कागज़ के सीने पर
फिर से एक बार 
कलम का गर्भपात हो गया !
बड़ा होने की जद्दो जहद में 
कितना छोटा
आदमज़ात  हो गया !


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जुलाई, 2011
                                                 राकेश कुमार त्रिपाठी

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