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आस्था

निर्जन पहाड़ पर
घूमते घूमते
एक चट्टान पर यूँ ही निगाह अटक गयी
उठा लाया उसे घर
और जितने भी नुकीले कोने थे
उन्हें तोड़ कर, घिस कर
पटक कर, पीट कर
फिर देखा तो
मुझे अचानक लगा
ये तो राम की मूर्ति है |
मैंने उस राम की चट्टान को
घर के सामने वाले
चौराहे पर रख दिया
और अगले ही दिन
बावेला मच गया शहर में
तलवारें, बल्लम, भालें
गोलियाँ, बम, बंदूकें !
राम से खिलवाड़ !!
फिर पता नहीं
वो चट्टान कहाँ गयी ?
लेकिन इस बीच
शहर में कर्फ्यू के दौरान
घूमते उस पगले भिखारी ने
मुझे बरसों बाद बताया
कि उसने उस चट्टान के सामने
हनुमान को बैठे देखा था | 




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                                                  जुलाई, 2011
                                         राकेश कुमार त्रिपाठी



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