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इन सालों के दरम्यान


सालों पहले आदमी
जंगलों में रहता था
दरख़्तों, पहाड़ों , जानवरों के बीच |
फिर ये जीवित प्राणी 
चला आया मैदानों में |
शुरू किया निर्माण उसने
एक नए जंगल का,
ईंट, पत्थर और कंक्रीट का |
धीरे - धीरे 
अपने आपको शहरी बनाता चला गया |
आज 
सालों पहले का वो जीवंत प्राणी
इमारतों की भीड़ में
निर्जीव सा हो गया है |
जंगल के जीवन से 
कोई नाता नहीं उसका,
सब कुछ भूल चुका,
बस
इमारतों के उस जंगल में
जंगलीपने को बचा कर रखा |
आज का आदमी 
उस सालों पहले के आदमी से
ज़्यादा जंगली बन गया है |
बस यही एक निशानी बची है,
जो याद दिलाती है कि
सालों पहले आदमी
जंगल में रहता था
दरख्तों, पहाड़ों, जानवरों के बीच |

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जुलाई , 1994
राकेश कुमार त्रिपाठी




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