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मुक्तक


 1
ज़िंदगी को जिया भरपूर,
बस कमी रही इतनी
इन पलों में रहा तुमसे दूर !

2

हो रही फ़िक्र है 
आज उनकी महफ़िल में 
मेरा ही ज़िक्र है !

 
3
हाँ मैं कसूरवार हूँ !
बड़ों की सुनाई परी-कथा पर
बच्चों का ऐतबार हूँ |
 
4
ये देश किसका है, कहो
या सी कर ज़बां अपनी
चुपचाप सब सहो !
 
5
दिन  को  कही  थी  तुमने  एक  बात,
जब  समझ  में  आयी
ढल  चुकी  है  आधी  रात !
 
6
पूछो, क्या कारण है
कि कंकरीले चावल, घास की साग
आज भी बिरसा के उपवास का पारण है 
 
7
ये क्या तरीक़ा है !
चोरी, ऊपर से सीनाज़ोरी,
क्या तेरा नाम भी अमरीका है !!
 
8
आज भी बेचैन ये प्रश्न है,
जिस दीये के नीचे काला अँधेरा,
वह ऊपर चमकता, क्यों मनाता जश्न है !
 
9
नाम उसका मक़बूल था,
जिससे जिगर था चाक उसका,
मुझमें भी पैबस्त वो ही शूल था |
(Dedicated to M F Hussain)
 
10
क्या जाने स्वर्ग कहाँ है
जिसकी ख़ातिर भोगता रहता
तू कब से नर्क यहाँ है !

11
बोला मुझसे मन बौरा-
दुनिया जिससे डरती-सहमती है
क्या ऐसे ही पड़ता है दिल का दौरा ?

12
मैं, मेरे गीत, मेरी कलम
हैं भी सचमुच कहीं !
या उसके दिल का है भरम ?

13
वो सबसे बड़ा नादान था 
जिसे अपने अक्लमंद होने पर  
सबसे ज़्यादा गुमान था | 






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