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दूसरी बार


सालों पहले 
घर लौटते वक़्त
मैं देखता
कैसे मेरी परछाईं 
पैरों से मेरे निकल कर
सामने लम्बी हो जाती
और एकदम से, अचानक 
पीछे चली जाती !
और ये क्रम चलता रहता
जब तक घर की चौखट 
नज़र न आ जाती |
दिन भर की थकन से 
बोझिल मेरी आँखें देखती
घर की चौखट के बीच
दो आँखें -
शांत, निश्छल, ममतामयी -
माँ की आँखें ऐसी ही होती हैं न !
सालों बाद ........
वही परछाईं,
वही थकन,
वही घर की चौखट और
वैसी ही दो आँखें ..... 
 ******************
शायद भूल गया कहना,
पत्नी मेरी घर में अकेली
दिन भर मेरा इंतज़ार करती है,
और मैं सोचता हूँ -
कब तक ?
एक जोड़ी आँखें
घर की चौखट के भीतर
रहेंगी क़ैद ?

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सितम्बर, 1994
राकेश कुमार त्रिपाठी 




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