click to have a glimpse of my journey so far

उस रोज़ उसकी गली से यूँ ही गुज़र गया



उस रोज़ उसकी गली से यूँ ही गुज़र गया
पहलू में दिल था फिर न जाने किधर गया

नाज़ो अदा से पाला था अपने ग़ुरूर को
आये जो उसके दर पे सो वो भी मर गया

बेख़ौफ़ और बेलौस हो जीते थे ज़िंदगी
तुझे खो न दूँ ये सोच नाहक ही डर गया

हम थे नशे में और फिर वो तेरी बज़्म थी
मेरा क़ुसूर क्या जो जाम टूटा बिख़र गया 

ज़र्रा था मैं पेशतर, क़दमों से लिपटा था
अब वायसे चश्म हूँ मैं जिधर गया

जिसकी शह पे दुश्मनी दुनिया से मोल ली
आज देखो वही अपनी ज़ुबां से मुक़र गया 

आहें भरीं तुम्हींने, तुमको ही नहीं ख़बर
एक तूफ़ान इस शहर से होकर गुज़र गया 

***********************

दिसंबर 2010
राकेश कुमार त्रिपाठी




to go to list of poems click here



No comments: