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तुम हो ... इसलिए..

हर घंटे बाद आने वाली
बस के स्टॉप पर,
बस के गुज़रने के, बस्स...
चंद लम्हों बाद
एक युवती - एक युवक
भागते हुए आये |
"पाँच मिनट के लिए बस छूट गयी !!
लड़के के मुँह से अधीरता फूटी |
निराश चेहरा, हाँफती आँखें !
फिर, युवती ने युवक के
कंधे पर रखकर हाथ
कहा कुछ चुपचाप |
पास होते हुए भी मैं सुन न पाया |
पेड़ के पत्तों में अटकी,
बारीश की बूँदें
गिरने में कितना वक़्त लेती हैं !
मुझे लगा
अगला घंटा कुछ गुज़र गया वैसे ही |
महसूस हुआ,
आती हुई बस को भी,
इंजन की अश्व शक्ति नहीं,
नारी की चिर नवीन
सहन शक्ति खींच रही हो !

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सच है,
अतीत के गर्भ से लेकर,
वर्तमान की प्रसव वेदना से होते हुए,
भविष्य के जन्म तक,
सब सहज हो जाता है
तुम हो ..... इसलिए ....


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मई , 1992
राकेश कुमार त्रिपाठी




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