देखो कि है हाथ में जिनके घोड़े की लगाम |
वो तो हैं घोड़े के ऊपर चढ़ने में नाकाम ||
कौन कसेगा जीन पीठ पर, कौन सहलाए पुट्ठे !
घुड़सवार ही छोड़ के रण को फरमाते आराम ||
कौन ख़बर ले इस घोड़े की, कौन खिलाये दाना !
घोड़े के चारे से भरती हैं इनके गोदाम ||
अश्व बेचारा भूखा - प्यासा, तेज़ धूप में तड़पा !
वो लगाकर लम्बी छतरी, बेसुध पीते जाम ||
गर बेहोश है घुड़सवार तो, तुम आ जाओ आगे |
मत सोचो जागेगा जब वो, क्या होगा अंजाम ||
घुड़सवार की ये कुम्भकर्णी निद्रा जब टूटेगी |
तब तक इस लंका का हो जाएगा काम तमाम ||
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अप्रैल, 1997
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